Shayari: उर्दू शायरी में हर मज़मून पर क़लम उठाई गई है. फिर चाहे बात रोशनी की हो या अंधेरों की. शायरी में हर विषय को पूरी तवज्जो दी गई है. जिस तरह शेरो-सुख़न (Shayari) की दुनिया में हर जज़्बात को बेहद ख़ूबसूरती के साथ काग़ज़ पर उकेरा गया है. इसी तरह तारीकियों की बात भी की गई है. देखा जाए तो शायरी दिल से निकली चाह और सदा है. ऐसे में इन अशआर के बहाने बड़ी ख़ूबसूरती से जज़्बात (Emotion) को तवज्जो मिली है. यही वजह है कि शायरों के कलाम की कशिश दिलों को अपनी ओर खींचती रही है. आज हम शायरों के ऐसे ही बेशक़ीमती कलाम से चंद अशआर आपके लिए लाए हैं. शायरों के ऐसे अशआर जिसमें बात ‘अंधेरों’ की हो और चाहतों का जिक्र हो. आप भी इन बेशक़ीमती अशआर का लुत़्फ़ उठाइए…
अंधेरों को निकाला जा रहा है
मगर घर से उजाला जा रहा है
फ़ना निज़ामी कानपुरी
आज की रात भी तन्हा ही कटी
आज के दिन भी अंधेरा होगा
अहमद नदीम क़ासमी
शहर के अंधेरे को इक चराग़ काफ़ी है
सौ चराग़ जलते हैं इक चराग़ जलने से
एहतिशाम अख्तर
इश्क़ में कुछ नज़र नहीं आया
जिस तरफ़ देखिए अंधेरा है
नूह नारवी
उल्फ़त का है मज़ा कि ‘असर’ ग़म भी साथ हों
तारीकियां भी साथ रहें रौशनी के साथ
असर अकबराबादी
चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अंधेरा है
ज़रा नक़ाब उठाओ बड़ा अंधेरा है
साग़र सिद्दीक़ी
लुटा रहा हूं मैं लाल-ओ-गुहर अंधेरे में
तलाश करती है किस को नज़र अंधेरे में
अफ़ज़ल इलाहाबादी
रह रह के कौंदती हैं अंधेरे में बिजलियां
तुम याद कर रहे हो कि याद आ रहे हो तुम
हैरत गोंडवी
अंधेरे में तजस्सुस का तक़ाज़ा छोड़ जाना है
किसी दिन ख़ामुशी में ख़ुद को तन्हा छोड़ जाना है
अशअर नजमी
ख़ुद चराग़ बन के जल वक़्त के अंधेरे में
भीक के उजालों से रौशनी नहीं होती
हस्तीमल हस्ती
हम भटकते रहे अंधेरे में
रौशनी कब हुई नहीं मालूम
source:news18