कोरोना महामारी फैलाने के आरोपों में घिरा चीन अब एक नए विवाद में फंस गया. हांगकांग के पास चीन के एक परमाणु प्लांट में कुछ दिनों पहले रिसाव की खबर आई लेकिन चीन इस जानकारी को सीक्रेट रख रहा था. माना जा रहा है कि प्लांट से लीकेज बढ़ने पर हालात काफी खतरनाक हो सकते हैं. उस प्लांट में एक फ्रांसीसी कंपनी भी हिस्सेदार है इसलिए अब अमेरिका और फ्रांस मामले की जांच में जुटे हैं.
क्या हो रहा है चीन में
चीन के गुआंगदोंस प्रांत में ताइशन न्यूक्लिर पावर प्लांट (Taishan Nuclear Power Plant) से रेडियोएक्टिव रिसाव की खबर डरा रही है. सीएनएन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक अब अमेरिका में बाइडन प्रशासन देख रहा है कि कहीं रिसाव ज्यादा तो नहीं हो रहा. अगर ऐसा होता है तो भारी तबाही मच सकती है. इससे न केवल वहां की आबादी, बल्कि रेडियोएक्टिव तत्वों के कारण हवा के विषैले होने पर पड़ोसी देशों तक असर जा सकता है.
क्या होता है, जब शरीर में रेडियोएक्टिव तत्व चले जाएं
ये ऐसे तत्व हैं, जिसके संपर्क में आते ही कुछ ही दिनों के भीतर स्वस्थ से स्वस्थ इंसान दम तोड़ देता है क्योंकि ये सीधे खून से प्रतिक्रिया करते हैं. इसके अलावा धीमी गति से क्रिया करने पर भी ये स्किन, बोन या ब्लड कैंसर जैसी घातक बीमारियां देते हैं.
रेडियोएक्टिव तत्वों के कारण हवा के विषैले होने पर पड़ोसी देशों तक असर जा सकता है-0 सांकेतिक फोटो (pixabay)
बच्चों में थायरॉइड कैंसर का खतरा
लाइव साइंस वेबसाइट पर मिली जानकारी के मुताबिक रेडियोएक्टिव तत्व कोशिकाओं पर ही हमला नहीं करते, बल्कि शरीर के अलग-अलग अंगों पर घातक असर डालते हैं. जैसे रेडिएक्टिव आयोडिन को थायरॉइड ग्लैंड अवशोषित कर लेती है. इससे थायरॉइड कैंसर हो जाता है. बच्चों पर ये खतरा ज्यादा रहता है क्योंकि उनकी थायरॉइड ग्लैंड वयस्कों से 10 गुनी छोटी होती है.
रक्तस्त्राव से हो सकती है मौत
इसके अलावा रेडिएशन सिकनेस भी होती है, जो हवा में मौजूद रेडिएशन या पानी के जरिए पहुंचने वाले रेडियोएक्टिव तत्वों के कारण होती है. ये अक्सर जानलेवा होती है क्योंकि इसमें तत्व सीधे शरीर में पहुंचकर हर अंग पर असर डालते हैं. इसके लक्षणों में नाक, कान, मुंह से खून आना या फिर आंतरिक ब्लीडिंग भी शामिल है.
रेडियोएक्टिव तत्व सीधे DNA पर हमला करते हैं- सांकेतिक फोटो (pixabay)
खतरा सैकड़ों-हजारों सालों तक रहता है
रेडियोधर्मी कचरे के साथ दूसरी बड़ी समस्या है कि ये पूरी तरह से खत्म नहीं हो सकते. कचरे के स्रोत के आधार पर, रेडियोधर्मिता कुछ घंटों से सैकड़ों सालों तक रह सकती है, जिसके बाद इसका घातक असर कम होता है. यही वजह है कि इसके खतरे के आधार पर ठोस और तरल कचरे का निपटान अलग तरह से होता आया है. ठोस को सावधानी से ऐसी जगह पर और इस प्रकार से गाड़ा जाता है कि उससे निकलने वाली हानिकारक विकिरण व अन्य कण कम से कम हानि पहुंचा सकें और उसमें कोई रिसाव न हो.
पहले भी हो चुके हैं ऐसे हादसे
रेडियोधर्मी तत्वों के लीकेज के कारण होने वाला खतरा हवा-हवाई नहीं, बल्कि पूर्व में ऐसे हादसे हो चुके हैं. यूक्रेन के चेर्नोबिल परमाणु ऊर्जा स्टेशन में साल 1986 में विस्फोट हुआ था. इसके बाद आनन-फानन प्लांट समेत आसपास के इलाकों को खाली करवा दिया गया. हालांकि इसके बाद हजारों लोग ऐसी बीमारियां लेकर आए, जो इन तत्वों के कारण हुईं.
जापान के फुकुशिमा प्लांट की भी खूब चर्चा रही
दशकभर पहले जबर्दस्त सुनामी के बाद फुकुशिमा परमाणु संयंत्र तबाह हो गया था. इसके बाद से वहां 10 लाख टन से ज्यादा रेडियोएक्टिव पानी जमा है. इसे समुद्र में बहाने की बात हुई. संयंत्र से पानी समुद्र में छोड़ने के पीछे आगामी टोक्यो ओलंपिक खेल हैं. खेल की जगह फुकुशिमा से लगभग 60 किलोमीटर दूर है. ऐसे में दुनियाभर से आए खिलाड़ियों को किसी दुर्घटना का डर हो सकता है. इसी डर को खत्म करने के लिए जापान सरकार रेडियोएक्टिव पानी को समुद्र में बहाने का फैसला लिया.
जापान के फुकुशिमा परमाणु प्लांट के कारण भी देश चिंता में हैं- सांकेतिक फोटो (flickr)
सरकारी आश्वासन के बाद भी चिंता
सरकार ने कहा कि विषैले तत्वों को बहाने के पहले पानी को साफ किया जाएगा. सरकारी दावों के मुताबिक ये इतना साफ होगा कि उसमें रेडिएशन बाकी नहीं रहेगा. लेकिन इसपर पड़ोसी देश डरे हुए हैं. चिंता है कि रेडियोएक्टिव तत्व अगर बहते हुए उनके देश पहुंच गया तो नतीजे घातक होंगे.
जापानी मछुआरे हो जाएंगे तबाह
बाहरी दुनिया तो छोड़िए, खुद जापान के मछुआरे भी पानी छोड़ने का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे उनका व्यापार ठप हो जाएगा. बता दें कि पहले से ही जापान में समुद्री जानवरों को नुकसान पहुंचाने के कारण जापानी मछुआरे कुख्यात रहे. कड़े नियमों के साथ काफी मुश्किल से उन्होंने अपनी छवि बदली. इसके बाद भी काफी सारे देश फुकुशिमा से आने वाली मछलियां या दूसरा सी-फूड नहीं खरीदते हैं. अब रेडियोएक्टिव पानी बहाने से न केवल समुद्री जंतुओं को नुकसान होगा, बल्कि मछुआरों का काम बंद हो जाएगा क्योंकि कोई भी उनके पास से जहरीले सी-फूड नहीं खरीदना चाहेगा.