पृथ्वी (Earth) पर हर समय कहीं ना कहीं सूरज ऊग रहा होता है तो कहीं सूरज डूब रहा होता है. समय को दुनिया भर में एक तुलना करने वाले मानक के लिए हमारी पृथ्वी को पूरब और पश्चिम से लेकर गोलाई में 24 घंटों में बांटा गया है. इन्हीं के आधार पर दुनिया के देश अपना मानक समय चुनते हैं. भारत (India) ने 1 सितंबर 1947 को ही अपना मानक समय (Indian Standard Time) चुना था. पिछले 75 सालों से गुजरात से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक यही टाइम जोन अपनाया जा रहा है. आइए जानते हैं क्या है ये और इससे पहले क्या थी व्यवस्था.
पृथ्वी को बांटने वाली देशांतर रेखाएं
पृथ्वी के समय को समझने के लिए हमें देशांतर को समझना होगा. पूरे पृथ्वी के गोले को उत्तरी ध्रुव से लेकर दक्षिण ध्रुव को जोड़ने वाली 360 रेखाएं बांटती है जिन्हें देशांतर रेखाएं कहा जाता है. पूर्व से पश्चिम तक स्थितियों का निर्धारण करने वाली ये रेखाएं ही समय का आधार हैं. पृथ्वी हर घंटे में 15 डिग्री घूमती है, जिसे एक टाइमजोन की दूरी कहा जाता है. इसमें उत्तर से दक्षिण तक जाने वाली वह रेखा जो ब्रिटेन के ग्रीनविच वेधशाला से होकर गुजरती है, शून्य देशांतर रेखा मानी गई है.
दुनिया को एक मानक की जरूरत
अगर एक सपाट नक्शे को देखें तो पूरे नक्शे को ऊपर से नीचे के करीब 24 रेखाएं दिखती है. यहीं टाइम जोन हैं. लेकिन उससे पहले पूरी दुनिया को एक ही मानक समय में बांटना जरूरी था जिससे तुलना कर दुनिया के देश आपस में अपने समय का तालमेल बिठा सकें. इसके लिए दुनिया के लिए कोऑर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम जिसे UTC के नाम से ज्यादा जाना जाता है, अपनाया गया. लेकिन उससे कहीं पहले ग्रीनविच रेखा के आधार पर ग्रीनविच मीनटाइम यानी GMT को अपनाया लिया गया था.
अंग्रेजों का दिया गया मानक समय
1884 में जब अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर टाइम तय किए जाने वाली बैठक हुई थी. ग्रीनविच मीनटाइम यानी GMT का मानक समय अपनाया गया और उसी तुलना कर अंग्रेजों ने दो टाइम जोन को अपनाया. जिसमें एक 4 घंटे 51 मिनट आगे का टाइम ज़ोन बॉम्बे टाइम कहा गया. फिर 1906 में जब आईएसटी का प्रस्ताव ब्रिटिश राज में ही आया, तब बॉम्बे टाइम की व्यवस्था को बचाने के लिए फिरोज़शाह मेहता ने भरसक प्रयास किया था.

कलकत्ता टाइम
साल 1884 वाली बैठक में ही दो टाइमजोन तय किए गए थे, जिनमें से एक कलकत्ता टाइम था. जीएमटी से 5 घंटे 30 मिनट और 21 सेकंड आगे के टाइम ज़ोन को कलकत्ता टाइम माना गया था. 1906 में आईएसटी का प्रस्ताव जब नाकाम रहा, तो कलकत्ता टाइम भी चलता रहा. कहते हैं कि अंग्रेज़ खगोलीय और भौगोलिक घटनाओं के दस्तावेज़ीकरण में कलकत्ता टाइम का ही इस्तेमाल करते थे.
उससे बहुत पहले था मद्रास टाइम
बॉम्बे और कलकत्ता टाइम के बहुत पहले से मद्रास टाइम भारत में जरिया था. भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले खगोलशास्त्री जॉन गोल्डिंघम ने 1802 में मद्रास टाइम जोन की व्यवस्था बनाई थी. जीएमटी से 5 घंटे 21 मिनट और 14 सेकंड के आगे वाले इस टाइम जोन को बाद में रेलवे ने भी अपनाया तो इसे रेलवे टाइम भी कहा जाने लगा था. बॉम्बे और कलकत्ता टाइम ज़ोन के बावजूद रेलवे ने इसे अपनाया था. हालांकि 1884 के बाद से इसकी वैधता खत्म हो चुकी थी.

आजादी के बाद
आजादी के बाद भारतीय मानक समय यानि आईएसटी अपनाया लिया गया. यह यूटीसी के हिसाब से +05:30 माना गया यानी साढ़े पांच घंटे आगे वाला टाइम ज़ोन. जब ये तय हुआ तो एक समस्या पैदा हुई कि पूर्व से पश्चिम तक देश की सीमा करीब 2933 किलोमीटर की थी, ऐसे में एक टाइमजोन के औचित्य पर सवाल भी उठा. पूर्वी अरुणाचल से लेकर कच्छ तक यह एक ही कैसे हो सकता है इस पर बहुत बहस हुई.947 में तो मद्रास में बनी नक्षत्रशाला को प्रयागराज जिले में लाया गया और भारत एक ही मानक समय लागू हुआ जिसने पूर्व और पश्चिम में संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया.
आज भी एक से अधिक टाइम जोन की मांग वक्त बेवक्त उठती ही रहती है. विज्ञान के मुताबिक गुजरात के कच्छ के रण में और उत्तरपूर्वी सीमा के किसी अरुणाचल इलाके में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय में दो घंटे से ज़्यादा का अंतर रहता है. फिलहाल देश में एक ही टाइम जोन चल रहा है.
source:news18